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संतोष का धन (Santosh Ka Dhan) Moral Story in Hindi

एक ऐसा सच जो सभी को मानना चाहिए अगर इंसान के जीवन में कोई बड़ी दौलत है तो वो है संतोष का धन Satisfaction Wealth Moral Story in Hindi.

दुनिया में उसी आदमी को संतोष मिलता है जो अपने काम और अपने आस पास की चीज़ों से प्यार करता है और उनसे तालमेल रखना जनता हो…

इतना ही नहीं जितना आपके पास है चाहे वो पैसा या कोई अन्य वस्तु जिसके आप मालिक हो उसमे भी आपको संतुष्ट रहना होगा तभी आपको पूरा satisfaction मिल पायेगा और आप कह सकेंगे Satisfaction Wealth in Hindi.

आईये बात करते है इस समाज में लोग कैसे अपने views रखते है संतुष्टि को लेकर सच ही कहा गया है इस संसार का सबसे बड़ा धन है santosh ka dhan जिसके पास संतोष नहीं है उसके पास कितना भी रुपया पैसा हो तब भी वो धनवान नहीं है.

उसके जीवन में सिर्फ खीचा तानी और हाय तौबा है मारपीट ही बाकि रह जाती है इस प्रकार दौलत होते हुए भी वो आदमी इस धरती पर सबसे गरीब माना जाता है या वो खुद अपने आपको निर्धन समझता है.

ये जरुरी नहीं की यह सोच सबके साथ होगी बिलकुल नहीं ऐसा 100 प्रतिशत हो ही नहीं सकता है.

हमने आपको कुछ इस तरह बताने की कोशिश की है मान लीजिए दो आदमी है एक बहुत अमीर है और दूसरा उतना ही ज्यादा गरिब है.

एक के पास बहुत अधिक पैसा है उसे पता तक नहीं वही उसके विपरीत दुसरे के पास बहुत कम पैसा है जिसे अपने खाना खाने के बारे में भी सोचना पड़ता है.

किसी शहर में एक पंडित रहते थे उनका नाम श्री मान रामशरण था वो अपनी घरवाली के साथ शहर के बाहर रहते थे पेशे से वो एक teacher थे.

एक दिन जब वो अपने विद्यार्थिओं को पढ़ाने के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी ने उनसे सवाल किया-

“कि आज घर में खाना कैसे बनेगा क्योंकि घर में केवल मात्र एक मुठी चावल भर ही है?”

पंडित जी ने पत्नी की और एक नजर से देखा फिर बिना कुछ कहे वो घर से चल दिए जब शाम को वापिस लौट कर आये तो भोजन के समय थाली में कुछ उबले हुई चावल और पत्तियां देखी.

यह देखकर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा देवी ये स्वादिष्ट शाक जो है वो किस चीज़ से बना है… इस पर पत्नी ने जबाब दिया मैंने जब सुबह आपके जाते समय आपसे भोजन के विषय में पूछा था तो आपकी दृष्टि इमली के पेड़ की तरफ गयी थी.

मैंने उसी के पत्तो से यह शाक बनाया है पंडित जी ने बड़ी निश्चितता के साथ कहा अगर इमली के पत्तो का शाक इतना स्वादिष्ट होता है.

फिर तो हमे चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है अब तो हमे भोजन की कोई चिंता ही नहीं करनी चाहिए.

जब उस नगर के राजा को पंडित जी की गरीबी का पता चला तो राजा ने पंडित को नगर में आकर रहने का प्रस्ताव दिया किन्तु पंडित ने मना कर दिया.

यह बात जानकार राजा हैरान हो गया और स्वयं उनकी कुटिया में जाकर उनसे मिलकर इसका कारण जानने की इच्छा जाहिर की.

जब राजा उनकी कुटिया में गया तो राजा ने काफी देर इधर उधर की बाते की लेकिन वो असमंजस में था कि अपनी बात किस तरह से पूछे लेकिन फिर उसने हिम्मत कर पंडित जी से पूछ ही लिया कि आपको किसी चीज़ का कोई अभाव तो नहीं है ना?

राजा की बात सुनकर पंडित जी हसकर बोले यह तो मेरी पत्नी ही जाने इस पर राजा पत्नी की और आमुख हुए और उनसे वही सवाल किया.

तो इस बार पंडित जी की पत्नी ने जवाब दिया कि अभी मुझे किसी भी तरीके का अभाव नहीं है क्योंकि मेरे पहनने के वस्त्र इतने नहीं फटे कि वो पहने न जा सकते हो.

और पानी का मटका भी तनिक नहीं फूटा कि उसमे पानी नहीं आ सके और इसके बाद मेरे हाथों की चूडिया जब तक है मुझे किसी चीज़ का क्या अभाव हो सकता है.

और फिर सीमित साधनों में भी संतोष की अनुभूति हो तो जीवन आनंदमय हो जाता है.

इस moral story से हमे ये सीख मिलती है की अगर सच्चा सुख और शांति चाहिए तो सीमित साधनों से ही अपना काम चलाओ अपनी जरूरत से अधिक सोचना और किसी भी काम को करना आपकी खुशहाल जिंदगी में संतुष्टि का अभाव पैदा कर सकती है.

अगर आपको वाकई अपनी life में पूरा संतोष चाहिए तो आपको धैर्य रखना होगा जो आपके पास है उसमे खुश रहना होगा तभी ये सब कुछ संभब हो सकता है.

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